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मोसपास शाति के वीरों के प्राचिन कवित . (११) पश्च गोतमंडण मुगट, सुधन सुखेती बाहया । भेसेज शेठ बरहथ तणे, अवनी बोल निवाहिया ।। ॥ बंदिवान छोडनेवाला भेरुशाहका छंद ॥ असुर सेन दल संभरि भाइ, बंधवि मुगलां बंदि चलाइ । पहुसम परज करै पुकारं कीधा चरित किसौ करतारं ॥१॥ अगड भीम जगसी नहीं, सारंग सहजा तंन; बाहर चढि डाहा तणां, महि भैरू महिवन ॥२॥ मृगनैणी मंनि औदकै, परवसि 'पाली' जाई। के 'लोढा' तुमथी उबरै, के खुरसाण विकाइ ॥ ३ ॥
. छंद. खुरसाण काबिल दिसह खंचहि एक रूसन बरसये । असवरै यौ मुलितांन लीजै, करब चेडी दखये ॥ खटहडै कोट दुरंग पाडी, धग असपति धावये ।। पुनिवंत सारंग पछे भैरू, बहुत बंदि छुडावये. ॥१॥ भड सुहड ते भै भंति भगा, को न वाहर भावये । फिरि राज कवरी वाट हालै, अम्हे कोण छडावये ।। अहिवात अविचल दिये 'लोढौ,' सीख संचिगां लाइयं । पुनिवंत सारंग पछे भैरू, बहुत बंदि छुडाइयं ॥२॥ बाभणी विणाणी पवणी सारी, दे असीसां प्रति घणी ।
लख बरस 'लोढा' पाघ कायम, किति चहु खंडी तुम तणी। १ आदित्यनाग गौत्र बोरडिया साखा, २ मारवाडमें पाली, ३ ओसवाल लोढा गोत्र.