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________________ (५०) श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा. पर उनकी पोशाक तो अपने देश कि ही रहेगी परन्तु जो चिरकाल से विदेशवासी हो गये है उन्हो की पोषाक देशानुसार बदल भी गई हैं पर वह कभी देशमें आते है तब तो उन्हको अपने देश कि पौशाकादि धारण करनी पड़ती है। (२०) ओसवालों की भाषा-प्रोसवालों की मूल भाषा मारवाडी है पर वे प्रायः संस्कृत प्राकृत गुजराती मरेठी कनडी तैलंगी बंगाली आदि बहुत भाषा भाषी हुवे करते है यह कहना भी अतिशय युक्ति न होगा कि जितनी भाषाओं का बोध पोसवालों को है उतना शायद ही अन्य ज्ञाति को होगा। प्रोसवालों मे उच्च भाषा व उच्च शब्दों का प्रयोग विशेष रूप में होता है पत्रों की लिखावट में भी एसा प्रीय और उच्च शब्दों का प्रयोग किये जाते है कि जिनसे प्रेम ऐक्यता का संचार स्वभाव से ही हो जाता है। ओसवालों को जैसे भाषा का विशाल ज्ञान है वैसे लिपियों का ज्ञान भी विस्तत्व है वह हरेक लिपि को इसारा मात्रसे पढ सक्ते है इसका कारण ओसवालों का व्यापार हरेक देशवाशियों के साथ है । __(२१) ओसवालों की महत्वता-पोसवाल ज्ञाति अन्योन्य ज्ञातियों से चढ वढ के होनेपर भी अन्योन्य ज्ञातियों के साथ प्रेम ऐक्यता के साथ उनकी उन्नति में आप सहायक बन मदद करते हैं इतना ही नहीं बल्कि ग्राम संबन्धी कोइ भी कार्य हो उसमें आप कितने ही कष्ट व नुकशान उठा लेते है राज दरबार में जाने का काम पडनेपर आप अपना काम छोड वहां जावे जबाब सवाल करे पैसा खरच
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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