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(४८) श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
और किसान लोगों को द्रव्य करज में दिया करते हैं इस. में स्वार्थ के साथ देशसेवा भी रही हुई है कारण देश आबादी का प्राधार किसांनो पर है किसानों कों जैसे जैसे साधन सामग्री अधिक मिलती है वैसे वैसे पैदावारी अधिक करते है जिस देशमें खाद्यपदार्थादि की अधिक पैदावारी है वहां राजा प्रना सब सुखी और उन्नत रहते है ।
(१६) ओसवालों का व्यापारक्षेत्र की विशालताभारतीय देशों के सिवाय सामुद्रिक जहाजों द्वारा अन्य देशो में भी
ओसवाल व्यापारियों का व्यापार था, ज्ञाति भाइयों के सिवाय अपने देश भाइयों को भी व्यापार में उन्नत बनाने कि कौशीष करते है जो लोग देश में व्यापार करते है वह भी बड़े ही थोकबंध व्यापार करते हैं कि एक बड़े व्यापारी के पिच्छे सेंकडो लोग अपना गुजाग अच्छी तरह से कर सके। श्रोसवालो को कूलदेवी का वरदान है कि वह व्यापार मे बहुत द्रव्य पैदा करे " उपकेश बहुलं द्रव्यं "
ओसवाल जैसे न्यायपूर्वक द्रव्योपार्जन करते है वैसे ही वह शुभ कार्यों में भी लाखो क्रोडों द्रव्य खरच के अपने जीवन को सफल बनाते है।
(१७ ) ओसवालों के व्याह लग्न-जो राजपुतों से ओसवाल बनाये गये थे उनफी लग्न सादी कितनेक अरसे तक तो राजपुतों के साथ ही होती रही। बाद ओसवाल ज्ञाति का एक वडा भारी जथ्था बन्ध गया तब से उनकी लग्न सादी चार साखाए छोड के अपनि ज्ञाति में होने लगी । पर इस ज्ञाति के पूर्वजोंने एसे उत्तम