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(१६) जैन जाति महोदय प्र० चोषा. से शरीर व वस्त्रशुद्धि कर पूजापाठ श्रादि अपना इष्ट स्मरण करने के बाद स्त्री व पुरुष अपने गृह कार्य में प्रवृतमान होते है इतना ही नहीं पर यज्ञोपत लेना भी भोसवालों का कर्तव्य है प्रोसवाल लोग सदेव थोडा बहुत पुन्य अपने घरों से निकालते है जैसे. अभ्यागतों को अन्नजल गायों को घास कुत्तोंको रोटी भितुकों को भोजन यह प्रोसवालों की दिनचर्या है।
(११) ओसवालों की वीरता-भारतीय अन्योन्य ज्ञानियों से प्रोसवालों की वीरता चढबढ के हैं। कारण यह झाति मूलराजपुतों से बनी है ओसवालो में ऐसे एसे शूरवीर हुवे है कि सेंकडो जगह संग्राम में प्रतिपक्षी व अन्यायीओं का पराजय कर अपनी विजय पताका भूमण्डल में फरकाते हुवे देश का रक्षण किया .जिनवीरोंकी वीरता का उज्ज्वल जीवन इतिहास के पृष्टोपर आज भी सुवर्ण अ. तरों से अंकित है।
(१२). मोसवालों का पदाधिकार-दीवान, मंत्री, महामंत्री, सेनापति, हाकिम, तेहसीलदार, जज-जगतसेठ, नगरशेठ, पंच, चोधरी, पटवारी, कामदार, खजानची, कोठारी, बोहारजी,
आदि प्रोसवालो को पदाधिकार दिया जाता है तदनुसार वह जगत् का व नगर का भला भी किया करते है और नागरि कों की तरफ सेही नहीं पर राजा महाराजाओं की तरफ से बडा भारी मान मरतबा भी मिलता है यह कहना भी अतिशय युक्त न होगा कि उस समय राजदरबार में प्रोसवाल चाहते वह ही कर गुजरते थे। अर्थात् इस