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________________ ओसवाल झाति का परिचय. . (4) विशेष किया जाता है पाप कर्म का त्यागकर प्रात्मभाव में रमणत करना प्रोसवान लोग अपना कर्तव्य समझते है। (६) ओसवालों का संमेलन-दीर्घदशी ओसवालोंने अपने संमेलन के लिये प्रत्येक प्रान्त के एकेक तीर्थों पर ऐसे मेलेमुकरर कर दीये है कि वर्ष भर में एक दो संमेलन तो सहज ही में हो जाता है । वे भगवान की भक्ति के साथ अपने न्याति जाति समाजिक और धार्मिक विषय में किसी प्रकार के नये नियम बनाना और पुराणे नियमों का संशोधन करना खराब रूढियों को निकालना सदाचार का प्रचार करना इत्यादि समयानुसार कार्य कर सकते है कारण वहां सब प्रान्त के लोग एकत्र होनेसे न तो किसी के घर पर वह कार्य होता है न किसी को बुलाने का या खरचा उठाने का जोर पडता है धर्मस्थानपर प्रेम एक्यता से किया हुवा कार्य को चलाने में कोशीस भी नहीं करनी पड़ती है । . (१०) ओसवालों का आचार व्यवहार-जुवा, चोरी, शीकार, मांस, मदिरा, वैश्या, परनारी एवं सात कुव्यसन और विश्वासघात धोखेबाजी, राजद्रोह, देशद्रोह, समाजद्रोह आदि लोक निंदनीय कार्य सर्वथा ताज्य है और वासी अन्न ( भोजन ) द्विदल, बावीश अभक्ष, अनछाना पाणी, रात्रीभोजन, आदि २ जीवहिंसा का कारण और शरीर में बिमारी वढानेवाले पदार्थ प्रोस. वालों के लिये सर्वथा अभन्न है । सुवा सुतकबाले घरोंमें अन्न जल नहीं लेना ऋत्रु-धर्म चार दिन बराबर टालना सदैव स्नान मज्जन
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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