________________
श्री ओसवाल ज्ञाति का परिचय.
( ४३ ) है बचपन से ही उनको एसी शिक्षा दी जाती है जिससे उनके संस्कार जैनधर्म पर दृढ जम जाते हैं। वे लोग अपने जैन मन्दिर मूर्तियों की त्रिकाल प्रार्थना, पूजा, पाठ, सेवा, भक्ति, उपासना करना अपना धर्म समझते है और जैनमुनियों की सेवा उपासना व व्याख्यानादि उपदेश श्रवण कर श्रात्मज्ञान, अध्यात्मज्ञान, तत्त्वज्ञान और ऐतिहासिकज्ञान प्राप्त करते है और अपने सत्यज्ञानद्वारा अन्य लोगोंको ही नहीं पर राजा महाराजाओं के चित्तको इस पवित्र जैनधर्म्मकी र आकर्षित करना अपना परम कर्त्तव्य समझते है ।
( ५ ) ओसवालोंके धर्म्म कार्य — जैन मन्दिर मूर्त्तियों की प्रतिष्ठाकरवानी पुरांणे मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करवाना, जैनतीर्थों की यात्रा के लिये वडे वडे संघ निकालना, स्वामिवात्सल्य करना अर्थात् स्वधर्मि भाइयों को हरप्रकार से मदद करना, शासनकी प्रभावना अर्थात किसी प्रकार से अपने धर्मका प्रभाव जनतापर डालना, स्थान स्थान पर ज्ञान भण्डारों कि स्थापना करना, अहिंसा परमोधर्मः का प्रचार विश्वव्यापि कर देना इत्यादि धर्म्म कार्य करना श्रोसवाल अपना परम कर्त्तव्य समझते है ।
(६) ओसवालों की परोपकारिता- दानशाला ( शत्रुकार ) अनाथालय श्रौषधालय, विद्यालय, मुसाफरखाना कुँवे, तलाव, वावडियों, सदावत पाणिकी पौवों, दुष्कालादिमें अन्नदाना दिसे दीन दुःखयोंका उद्धार करना, गौशाला पांजरापोलादि अनेक सुकृत कार्य कर देशवासी भाइयों की सेवामें हजारों लाखो क्रोडों द्रव्य खरच करना मोसवाल लोग अपना परम कर्तव्य समझते है ।