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जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
राजपुतोंके सिवाय ब्राह्मण व वैश्यों को भी जैनाचार्योंने जैन बनाके सवाल ज्ञातिके सामिल मिला लिये थे ।
( २ ) सवालज्ञातिका स्थान - श्रोसवालज्ञातिका मूलोत्पत्तिस्थान उपकेशपुर जिसको वर्तमान ओशियां नगरी कहते है बाद अन्योन्य स्थानोंसे भी राजपुतादि को श्रोसवाल बनाते गये वैसे ही यह ज्ञाति भारतके सब प्रदेशों में फैलती गई जैसे मारवाड, मेवाड, मालवा, दूढाड, हाडोती संयुक्तप्रान्त, मध्यप्रान्त, पंजाब, बंगाल, पूर्व, आसाम, दक्षिण, करणाट, तैलंग, महाराष्ट्रीय, गुजरात लाट, सौरठ, कच्छ, सिन्धादि भारत में एसा कोई देश व प्राप्त न होगा कि जहाँ सवालोंकी वस्ती नहो ?
( ३ ) ओसवालोंके गुरु - जैनाचार्य जो कनक कामिनी आदि जगतकी सब उपाधियोंसे विल्कुल अलग रहते है । परम निवृत्ति भावसे मोक्षमार्गको साधन करनेवाले मुनिवर्गको श्रोसवाल गुरु मानते है और उन्ही पर इतना भक्तिभाव रखते है कि एकेक पदाधिकार और नगर प्रवेशके महोत्सवमें हजारों लाखों रुपये खरच कर डालते हैं । से प्राचार्य महाराज केवल श्रोसवालों को ही नही पर श्रामजनता को उपदेश दे उनका जीवन नीतिमय धर्म्ममय परोपकारमय बनाके इस और परलोकमे सुखके अधिकारी बना देते है। श्रोसवालोंके दूसरे कुलगुरु होते है वह श्रोसवालोंके घरोमें सोलह संस्कार वगरह कार्य कराया करते है और सवालोंकी वंसावलियां भी लिखा करते है ।
(४) ओसवालोंका धर्म्म ओसवालोंका धर्म जैनधर्म