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________________ (२६) जैन जाति महोदय प्र. चोथा. तोरमाण के पुत्र मिहिरगुल कट्टर शैवधर्मोपासी हुवा उसके हाथ में राजतंत्र आते ही जैनो के दिन बदल गये, जैन मन्दिर जबरन तोडे जाने लगें जैन धर्म पालनेवाले लोगोंपर अत्याचार इस कदर गुजरने लगे कि सिवाय देशत्याग के दूसरा कोई उपाय नहीं रहा अाखिर जैनोंको उस प्रदेशको त्याग लाट गुजरात कि तरफ जाना पडा उसमें उपकेश ज्ञाति व्यापारी वर्गमें अग्रेसर थी जो लाट गुजरातमें आज उपकेश बाति निवास करती है वह विक्रम की चोथी पांचबी व छठ्ठी सदी मारवाडसे गइ हुई है और उन लोगोंने मन्दिर मूर्तियों कि प्रतिष्ठा कराई जिस्के शिलालेखोमें मी उपकेश ज्ञाति व उपकेश-वंस दृष्टिगोचर होते है इस प्रमाणसे विक्रम की पांचवी-छट्ठी सदी पहिला तो उपकेश ज्ञाति अच्छी उन्नति पर थी। (१४) महेश्वरी वंस कल्पद्रुम नाम पुस्तकमें महेश्वरी लोगों की उत्पत्ति विक्रम की पहिली शताब्दीमें होना लिखते है इसके पहिले ओसवाल अर्थात् उपकेश ज्ञाति महेश्वरी यो से पहिले बनी थी, इतना ही नहीं पर अपनी अच्छी उन्नति कर लीथी । (१५) विक्रम की दूसरी शताब्दीमें उपकेशगच्छाचार्य यक्षदेवसूरि सोपारपटनमें विराजते थे उस समय वनस्वामी के शिष्य बनसेनाचार्य अपने चार शिष्योंको दीक्षा दे सपरिवार सोपारपट्टण यक्षदेव सूरिके पास ज्ञानाभ्यास के लिये पधारे थे शिष्यों के ज्ञानाभ्यास चलता ही था बिचमें आकस्मात् आचार्य बमसेनसूरिका स्वर्गवास हो गया वाद उन चारों शिष्योंको १२
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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