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अोसवाल झाति के समय निर्णय. (२६) मूर्ति के लिये वि. सं. ५०८ मैशाशाहा के नाम का शिलालेख है उन भैशाशाह का परिचय देते हुवे मुन्शीजीने लिखा है कि भैशाशाहा के और रोडाविणजारा के आपस में व्यापार संबन्ध ही नहीं पर आपस में इतना प्रेम था कि दोनों का प्रेम चिरकाल स्मरणिय रहे इसलिये भैशा-रोडा इन दोनों के नामपर 'भैशरोडा नाम का प्राम वसाया वह आज भी मोजुद है. जैन समाज में भैशाशाहा वडा भारी प्रख्यात है वह उपकेश ज्ञाति आदित्यनाग गोत्र का महाजन था जब त्रि. स. ५०८ पहिला उपकेश झाति व्यापार में भी अच्छी उन्नति करलिथी तो वह ज्ञाति कितनी प्राचीन होनी चाहिये इस्केलिये पाठक स्वयं विचार कर सक्ते है ।
(१२) वल्लभि नगर का भंग कराने मे जो कांगसीवालि कथा को इतिहासकारोंने स्वीकार करी है वह शेठ दूसरा नहीं पर उपकेश ज्ञाति बलहागोत्र के रांका वांका नाम के शेठ थे और उन कि संतान प्राज रांका वांका जातियो के नाम से मशूहर है ____(१३) श्वेतहूण के विषय में इतिहासकारों का यह मत्त है कि श्वेतहूण तोरमाण पंजाब से विक्रम की छट्ठी शताब्दी में मरूस्यल की तरफ आया । और मारवाड का इतिहासिक स्थान भिन्नमाल को अपने हस्तगत कर अपनि राजधांनी मिनमाल म कायम की. जैनाचार्य हरिगुप्तसूरिने उस तोरमाण को धर्मोपदेत दे. जैनधर्म का अनुरागी बनाया जिसके फल में तोरमाणने मिन्नमाल मे भगवान् ऋषभदेव का विशाल मन्दिर बनाया बाद