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बना चुके हैं । कुल गुरु इतिहास सम्बन्धी एक भी बात प्रकट करना नहीं चाहते। कारण वे समझते हैं कि यदि हमने कुछ भी इस सम्बन्ध का भेद बतादिया तो हमारी जीविका का सिलसिला टूट जायगा । तथा कुछ कुल गुरुओं के पास जो थोड़े समय के पहले का लिखित इतिहास है उस में कल्पना का अंश अधिक है अतएव उन्हें यह भय है कि यदि यह सब विवरण प्रकाशित हो जायगा तो हमारी पोल खुल जायगी । इन्हीं कारणों से हमारे इतिहास की यह दशा हुई है। दरअसल जैन जातियाँ की उत्पत्ति प्रायः मारवाड़ में हुई है और इन जातियाँ के प्रतिबोधक व पोषक उपकेश गच्छाचार्यों का विहार भी विशेष कर मारवाड़ प्रान्त में ही हुआ है अतएव जैन जातियाँ की ऐतिहासिक सामग्री अन्य स्थानों की अपेक्षा उपकेश (कमला) गच्छोपासकों के पास मिलना ही अधिक सम्भव है ।
प्रस्तावना.
जब विक्रम सं १६७३ का मेरा चातुर्मास फलोधी हुआ तब मैंने स्थानीय उपकेश गच्छ के उपाश्रय के प्राचीन ज्ञान भंडार को देखा था उसमें कई पट्टावलियाँ, वंशावलियाँ और फुटकल पन्ने मेरे दृष्टिगोचर हुए । इन में मुझे ऐसी ऐसी बातें मालूम हुई जिन से मेरी अभिलापा यह हुई कि मैं जैन जातियाँ का इतिहा तैयार करूँ । किन्तु यह सामग्री मुझे पर्याप्त नहीं जँची फिर मेरी भावना हुई कि कुछ अधिक बातें खोजद्वारा मालूम कर ली जांय तदनुसार मैंने खोज का कार्य शुरू किया जिसमें मुझे सफलता मिलती गई। इस कारण मेरा उत्साह दिन प्रति दिन बढ़ता गया और फिर