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जैन जातिमहोदय.
है। जैनियों का ऐतिहासिक भंडार इतना बड़ा है कि यदि उसकी शोध
और खोज की जाय तो इतना मसाला उपलब्ध हो सकता है कि जिसके माधन से विश्व के सामने जैनियोंकी अतीत दशा विस्तार पूर्वक दिखलाई जा सके। पर सब यह अप्रकट रूप में है। कई भंडारो के ताले लगे पड़े हैं । दीमक आदिके द्वारा निरंतर अतुल सामग्री बरबाद हो रही है जिसकी सार और संभाल करनेवाला कोई न रहा । इस इतिहास के अभाव में आज जैन जाति पर झूठे झूठे . आक्षेप आरोपित हो रहे हैं। इस कलंक का निवारण करनेका साधन आज हस्तामलक नहीं हैं अतएव जैसा कुछ भी कोई कहे सब सहन करना पड़ता है। प्रमाद की हद्द हो चुकी है । ऐसा दूसरा कौन अभागी समाज होगा जो ऐतिहासिक सामग्री के मौजूद होते हुए भी उसे प्रकट रूप में न लावे ।
बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। जैनियाँने जो इतिहास नहीं लिखा है इस के भी दो मुख्य कारण हैं । प्रथम तो यह कि इसजाति के लोगोके अधिकाँश व्यापारी पेशा हैं अतएव ये लोग अपने बालकों को केवल उन्हीं बातों से परिचित कराते हैं जो उन्हें व्यापार में सहायता पहुँचावे । बच्चे के सम्मुख व्यापार ही का वातावरण रहता है
और वह बड़ा होकर उसी जीविका की धून में अपना जीवन बिता देता है उन्हें इतिहास प्रेम होना असंभव हैं। दूसरा कारण यह है कि इस जाति के लोगों में स्वावलम्बन का अस्तित्व नहीं है । इन के कई कार्य दूसरों पर आश्रित रहते हैं। इतिहास लिखने का ठेका इन्होंने अपने कुल गुरुओं को दे रखा है, जिसे कुल गुरु अपनी जाविका का साधन