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________________ प्रस्तावना. ( १५ ) आज दुनियाँ के इतिहास में अमर हो गया है। इनका जो असीम उपकार विशेष कर जीतना जैन जातिपर हुआ है भुलाया नहीं जा सकता । और आगे के प्रकरणोमें इनका इतिहास विस्तृत रूपमें लिखा जा रहा है। आधुनिक समय में प्रत्येक समाज, देश, जाति और राष्ट्र के लोग इस चिन्ता में लगे हैं कि विश्व के सम्मुख अपना अपना ऐतिहासिक वर्णन खोज कर प्रकाशित किया जाय। इस कार्य में सब लोग तत्पर हैं और आए दिन नई नई खोजें कर अपने ऐतिहा सिक संग्रह में निरंतर वृद्धि कर रहे हैं; वे ऐसा कोई प्रयत्न नहीं उठा रखते कि जिससे उनके इतिहास में कुछ वृद्धि होती हो । कहने का अर्थ यह है कि वे प्रत्येक रीति से इसी बात की चेष्टा में लगे हुए हैं । परन्तु खेद है और परम खेद है कि सभ्यता का दावा भरनेवाले जैन बन्धु इस ओर विचार तक नहीं करते । जैनियों की इस उपेक्षाने अपनी बहुत हानि की है। आज वे अपने ऐतिहासिक वर्णन को विश्व के सामने उपस्थित रखने की चिन्ता नहीं करते पर समय बीतने पर फिर उन्हें पछताना पड़ेगा । "जैनियों का गौरव, महत्व और बडप्पन बिना इतिहास के अधिक समय तक स्थिर रहने का नहीं यह बात बिल्कुज सत्य है । जिस जाति, देश या राष्ट्र के लोगों ने इस आवश्यक विषय की ओर उपेक्षा की वे आज संसार से लुप्त हो गये हैं । यदि जैनियों की निद्रा न खुलेगी तो यह सम्भव है उनका अस्तित्व निकट भविष्य में खतरे में रहे । जैनियाँ के पास ऐतिहासिक सामग्री ही नहीं है-सो यह बात नहीं
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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