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________________ (१४) जैन जातिमहोदय, शल्यादित प्रामराज, बनराज चावडा, राष्ट्रकूट अमोघवर्ष और परमार्हन महागजा कुमारपाल आदि नृप तथा शिशुनागवंशी, चैत्रवंशी, मौर्यवंशी, गुप्तवंशी, सेनवंशी, सुगवंशी, कदम्बवंशी कलचुरी वंशी, परमार, चौहान, राष्ट्रकूट (राठोड़) परिहार वंशी, चौलिक्य वंशी अनेक वीर पुरुष तथा भद्र महिलाओंने इस जैन धर्म को अपना कर इस के प्रचार करने का उद्योग भी उन्होंने किया था। यह कथन भी अत्युक्ति पूर्ण न होगा कि विक्रमकी बाहरवीं शताब्दी तक अनेक प्रान्तों में जैन धर्म राष्ट्र धर्म था। जिस प्रकार से राजा और महाराजाओंने जैन धर्म के प्रचार करने में प्रयत्न किये थे उसी प्रकार महाजन संघ के अनेक वीरोंने भी जी जानसे जैन धर्म के फैलाने में कोशिश की थी। उनके नाम हमारे इतिहास में सुवर्णाक्षरों में लिखने योग्य है. ऐसे वीर पुरुष एक नहीं सैकडों समय समय पर हुए हैं जिन्होंने समय समय पर जैन धर्म के उत्थान करने में हाथ बटाया था। देशलशाहा, गोशलशाहा, सारंगशाहा, भैंसाशाहा, झगडूशाहा, सोमाशाहा, समराशाहा, लूणाशाहा, कर्माशाहा, पाताशाहा, विमलशाहा, भैरूंशाहा, रामाशाहा, वीरवर वस्तुपाल तेजपाल मेहता, ठाकुरशी, तेजशी, रत्नशी, धर्मशी, भारमल्ल, भुजमल्ल, रणमल्ल और वीरभामाशाह का नाम गौर्व के साथ लिया जा सकता है जिन्होंने जैन धर्म के प्रचार करने में असाधारण प्रयत्न कर दिखाए थे । ये नरपुङ्गव देश, समाज, धर्म और जातिसेवा के ऐसे ऐसे अद्भुत और प्रभावशाली कार्य कर गये कि जिनके कारण इनका नाम
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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