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प्रस्तावना.
मंकीर्ण होते गये और यहाँ तक नौबत आ पहुँची कि इन के पारस्पपरिक विवाह का सम्बन्ध टूट गया और आज भी वही मिलसिला जारी है. ." वही रफतार बेढंगी जो पहले थी सो अव भी है।"
रही बात पारस्परिक भोजन व्यवहार की सो तो अब इम में भी मंकीर्णता फैल गई है। कई प्रान्तों में एक वंश वाले दूसर वंश वाले के साथ भोजन नहीं करते । जिन प्रान्तों में पारस्परिक भोजन व्यवहार प्रचलित है वे विवाह आदि सम्बन्ध नहीं करते हैं । यही कारण है कि उच्च शिखर पर चढ़ी हुई जैन जाति आज निरन्तर अवनति की ओर अग्रसर हो रही है और आज इम जाति की दशा कितनी सोचनीय हो गई है इस को दिग्दर्शन इस पुस्तक में विस्ताररूप से कराया गया है।
जैन जाति-यह शब्द विशाल अर्थ रखता है इस के अन्तर्गत उपकेश वंश ( ओसवाल ) श्रीमाल वंश तथा प्राग्वट वंश ( पोरवाल ) के अतिरिक्त खंडेलवाल, बधेरवाल, अग्रवाल, डीसावाल. नाणावाल, कोरंटवाल, पलीवाल, बाघट, वायट, माढ. गुर्जर, खंडायत, गोरा, भावसार, पाटीदार आदि अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं । जैन धर्म केवल इन उपर्युक्त जातियाँ में ही प्रमारित था मो बात नहीं है अपितु इस पवित्र धर्म के उपासक बड़े बड़े राजा महाराजा भी थे । यथाः-मौर्य वंश मुकुट मणि सम्राट चन्द्रगुप्त-कलिंगाधिपति महामेघवाहन चक्रवर्ती ग्वारवेल, परमार्हन महाराजा सम्प्रति, महाराजा ध्रुवसेन ,