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________________ (१०) श्री जैन जाति महोदय प्र८ चोथा. इस लेख का समय विक्रम सं. १०१३ का है। इस लेखसे यह सिद्ध होता है कि विक्रमकी इग्यारवी सदी तक तो इस नगरको उपकेशपुर कहते थे । इस विषयमें और भी बहुत प्रमाण मिलते है। बाद उएस-उकेश-उपकेश-का अपभ्रंश-ओशियों हुवा अर्थात् उएस का ओस होना स्वभाविक है एसा होना केवल इस नगरके लिये ही नहीं पर अन्यभी बहुतसे स्थानों के नाम अपभ्रंश हुवे दीख पडते है जैसे: जाबलीपुरका जालौर-सत्यपुरका साचोर-वैराटपुरका बीलाडा-अहिपुरका नागोर-नारदपुरीका नादोल-शाकम्भरीका सांभर-हंसावलिका हरसोर इत्यादि सेंकडो नगरोंका नाम अपभ्रंश हुवा इसी माफीक उएसका अपभ्रंश ओशियों हुवा । जबसे नगरका नाम फीर गया तब वहांके रहनेवाले जनसमुह के वंस-ज्ञाति का नाम फीर जाना स्वभाविक बात है । उएस का नाम ओशियों हुवा तब उएस वंसका नाम ओसवंस हुवा। आज जो ओसवालों में एकेक कारण पाके भिन्न भिन्न गौत्र व जातियां बन गई है। जिन गौत्र व जातियोंके दानवीरोंने हजारों मन्दिर और मूर्तियों बनाइथी जिनके शिलालेख आजभी मौजुद है उन गौत्र व जातियोंकि आदिमे उएसउकेश-उपकेश वंस लिखे हुवे मिलते है इसका कारण यह है कि मूलतो उएस-उकेश वंस ही था बाद कारण पाके जातियोंके नाम पड गये है यहाँ पर समय निर्णयके पहले हम यह सिद्ध कर बतलाना चाहते कि उएस-उकेश-उपकेश वंशका हि अपभ्रंश प्रोसवाल नाम हुवा है यह निश्चय होनेपर समय निर्णय करनेमें बहुत सुगमता हो जावेगी यद्यपि उएस वंशके हजारों शिलालेख मुद्रित हो
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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