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श्री ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय. (९) विषयमें आज तक कोई भी इनसे खिलाफ प्रमाण नहीं मिलता है
और जबतक खिलाफमे कोइभी प्रमाण न मिले वहाँ तक इसपर पूर्ण विश्वास रखना किसी प्रकारसे अनुचित नहीं समझा जावेगा इससे उपर लिखी दन्तकथा भी विश्वसनीय मानी जा सक्ती है ।
(३) तीसरा मत जो विक्रमकी दशवी सदीमें ओसवाल झातिकी उत्पतिका अनुमान करते है यह केवल भ्रमणा मात्र ही है कारण उन लोगोंने केवल ओसवाल और ओशियों नगरी इस नाम पर आरूढ हो यह अनुमान किया है अगर ओसवाल शब्दके लिये ही माना जावे तो वह सत्य भी हो सक्ते है कारण उक्त दोनों नामों की उत्पत्ति विक्रम की इग्यारवी शताब्दी मेंही हुइ है परन्तु इससे यह नहीं समझा जावे कि प्रोशियों नगरी व ओसवाल ज्ञातिकी मूल उत्पत्ति उस समय हुईथी इस विषयमें हमकों दीर्घ इष्टिसे विचार करना होगा कि श्रोशियों नगरी और ओसवाल ज्ञातिका नाम शरूसे यह ही था वह किसी मूल नामका अपभ्रंश हुवा है।
प्राचीन ग्रन्थ व शिलालेखों द्वारा यह पत्ता मिलता है कि आज जिस नगरीको हम ओशियों के नामसे पुकारते है उस नगरीका नाम पूर्व जमानेमें उएसपुर-उकेशपुर-भोर संस्कृत साहित्यमें उपकेशपुर मिलता है । देखिये प्रोशिया महावीर मन्दिरका शिलालेख जो श्रीमान् बाबु पुरणचंदजीने " जैन लेख संग्रह प्रथम खण्ड " में छपाया है जिस के पृष्ट १९२ लेखांक ७८८ में. ++
xx“ समेतमेतत्प्रथितं पृथिव्यमुपकेश नामाखि पुरं"++