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जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
पति अपार, खडबपति मिल्या माले । देरासर बहु साथ, खरच सामो कुरण भाले । घन गरजे वरसे नहीं, जगो जुग वरसे काले । ३ । यति सति साथे घणा, राजा राणबड भूप । बोले भाट विरुदावलि, चारण कविता चूप । मिल्या सेवग सामटा, पुरे संख अनूप | जुग जस लीनो दान है, वो जगो संघपति रूप | ४ | दान दीयो लख गाय, लख वलि तुरी तेजाला, सोनो सौ मण सात सहस मोतीयोंरी माला | रूपारो नहीं पार सहस करहाकर माला, बीये बांबीस भल उगियों श्रसवंस वड भूपाला
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अगर यह कविता सत्य हो तो इससे यह सिद्ध होता है कि वि. सं. २२२ पहिलि ओसवाल आभानगरी तक पसर गये थे अर्थात् सचायका देविका परिचय पाकर जगो श्रोसवाल संघ सहित ओशिया में बडे ही आडंबरसे आया हो, महावीर यात्रा और देविका दर्शन कर सेबग भाट चारण और ब्राह्मण वगैरहको वडा भारी दान दिया हो वह दन्त कथा परम्परासे चली आई हो वाद ये किसी अर्वाचीन कविने कविताके रूपमे संकलित कर लि हो तो वह बन भी सकता है कारण कि वीरात् ७० वर्ष और वि. सं. २२२ वीचमें ६२२ वर्ष जितना समय होता है इतनेमे ओसवाल ज्ञाति आभानगरी तक पहुँच गई हो तो आश्चर्य ही क्या है पर इसमें इतिहासिक प्रमाण न होनेके कारण इसपर हम इतना जोरदार विश्वास नहीं दिला सकते है.
(२) दूसरा मत - जो जैनाचार्यों और जैन ग्रन्थोंका है इस