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________________ ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय इसपर कितनेक लोगोंने यह अनुमान कर लिया कि श्रोशियों नगरी ही दशवीं सदी में वसी है तो ओसवालों की उत्पत्ति प्राचीन नहीं है पर इस समयके बाद होनी चाहिये । (च) विक्रम की दशवीं शताब्दी पहिले ओसवाल ज्ञाति का शिलालेख नहीं मिलनेके कारण भी लोगोंने अनुमान कर लिया कि ओसवाल ज्ञाति विक्रम की दशवी शताब्दी के बाद बनी होगी: (ट) ओशियों के महावीर मन्दिर में प्रशस्ति शिलालेख खुदा हुवा है उस का समय विक्रम सं. २०१३ का है इससे यह ही अनुमान होता है कि इस समय के आसपास में ओसवाल ज्ञा बनी होगी । . उपर लिखी तिनों मान्यता अर्थात् वि. सं. २२२ वीरात् . ७० वर्ष - और विक्रम की दशवी शताब्दी इन तीनों मान्यता के अन्दर कोनसी मान्यता अधिक विश्वसनीय और प्रमाणिक है इस पर हम हमारे अभिप्राय यहांपर प्रगट करना चाहते हैं । (१) भाट भोजक सेवक और कुलगुरुओं की मान्यता वि. सं. २२२ कि है पर इसमें कोइ इतिहासिक प्रमाण नहीं है तथापि इन लोगों की कवितासे कुच्छ अनुमान किया जा सक्ता है जैसे 66 आभा नगरीथी श्रव्यो, जगो जगमें भाग । साचल परिचो जब दीयो, तब सिस चडाई श्रण | १| जुग जिमाडयो जुगतसु, दीनो दान प्रमाण | देशल सुत जग दीपतों, ज्यारी दुनियों माने आण | २ | छूप धरी चित भूप, सैना ले आगल चाले । अडब
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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