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________________ (1) जैन जाति महोदय प्र० चोथा. ..(१४) मुनि श्री रत्नविजयजी महाराज जो ओशियोंमें करीबन् १ वर्ष रह कर वहांके प्राचीन स्थानों की शोध खोज कर जैनपत्र में लेख द्वारा प्रकाशित करवाया था कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसरिने इस नगरमें उकेश वंस की स्थापना और महावीर प्रभुके मन्दिर की प्रतिष्टा की थी. (१५) ओसवाल मासिक पत्र तथा अन्य वर्तमान पत्रोंमें मोसवाल ज्ञाति कि उत्पत्ति का समय वीरात् ७० वर्ष अर्थात् विक्रम पूर्व ४०० वर्षका ही प्रकाशित हूवा है इत्यादि. इसी माफिक. और भी अनेक प्रमाण मिल सकते है । जिन जिन जैनाचार्योंने ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति विषय में जो जो उल्लेख किये है उन उन ग्रन्थोमें यही लिखा मिलता है कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरिने उकेशपुर में उपकेश (बोस वाल) वंस की स्थापना की इनके सिवाय पट्टावलियों और वंसावलियों में तो सेंकडो प्रमाण और प्राचीन कवित वगैरह मिलते हैं वह उसी समयका है कि जिसको हम उपर लिख आये है । (३) तीसरा मत-आज कितनेक लोगों का मत है कि ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति विक्रम की दशवीं शताब्दीमें हुई जिसके विषय में निम्नलिखित दलीले पेश करते है. (क) मुनोयत नैणसी की ख्यात में भाबुके पँवारों की सावलि के अन्दर लिखा है कि उपलदेव पँवार ने ओशियों वसाई और उपलदेव पँवारका समय विक्रम की दशवीं सदीका है
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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