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________________ (४) जैन जाति महोइय प्र० चोथा. और प्रतिष्ठा करानेवाले उन प्राचार्यश्रीके स्थापन किये हुवे उकेशवंशीय श्रावक थे उस समय कोरंटामेंभी महावीर मन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई थी. (३) जैनधर्म विषय प्रश्नोत्तर नामक पुस्तकमें जैनाचार्य श्री विजयानंदमूरिने जैन धर्म की प्राचीनता बतलाते हुवे व भगवान् पार्श्वनाथ होने प्रमाण देते हुवे उपकेश गच्छाचार्यों से रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उपकेश नगरी में ओसवाल बनाया लिखा है। (४) गच्छमत प्रबन्ध नामके ग्रन्थमें प्राचार्य बुद्धिसागरसूरि लिखते है कि उपकेश गच्छ सब गच्छोमें प्राचीन है. इस गच्छ में आचार्य रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उकेशा नगरीमें उकेश वंश ( ओसवाल ) कि स्थापना की थी इत्यादि- . (५) प्राचीन जैन इतिहास में लिखा है कि प्रभव स्वामि के समय पार्श्वनाथ संतानिये रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उएस नगर में उएसवंस ( ओसवाल ) की स्थापना की. (६) जैन गोत्र संग्रह नामके ग्रन्थमें पं. हिरालाल हंसराज ने अपने इतिहासिक ग्रन्थ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे पार्श्वनाथ के छठे पाट प्राचार्य रत्नप्रभसूरिने उकेश नगरमें उकेशवंस की स्थापना की. (७) पन्यासजी ललीतविजयजी महाराजने आबु मन्दिरोंका निर्माण नाम की पुस्तक में कोचरों ( ओसवाल ) का इतिहास लिखते हुवे लिखा है कि आचार्य रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उके शपुर म ओसवाल बनाये थे उसमेंकी यह कोचर ज्ञाति भी एक है.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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