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________________ (१) जैन जाति महोदय प्र० चोथा. होने के कारण इतिहासज्ञानमें इतनी तो पिच्छाडी रही हुई है कि आज पर्यन्त अपनी ज्ञातिका सत्य-प्रमाणिक इतिहास संसारके सन्मुख रखनेमें एक कदमभी नहीं उठाया इस हालतमें भिन्न भिन्न मतों द्वारा आज जमाना ओसवाल ज्ञातिको सावधान कर रहा हो तो आश्चर्य ही क्या है। एक जमाना वह था कि भारतीय अन्योन्य ज्ञातियोंसे ओसवाज ज्ञातिकी शौर्यता, वीर्यता, धैर्यता, उदारता और देशसेवा चढ वढकेथी इस बातको तो आज संसार एकही अवाजसे स्वीकार कर रहा है। अतएव इस विषयमे यहाँपर अधिक लिखनेकी आवश्यक्ता नहीं है यहाँपरतो मुझे केवल ओसवाल ज्ञातिकी उत्पत्ति समयका ही निर्णय करना है। (१) भाट भोजक सेवग और कितनेक वंसावलि लिखनेवाले कुलगुरु लोग ओसवालोकी उत्पत्ति वि. सं.२२२ में होना बतलाते है इसमें इतिहास प्रमाण तो नहीं है पर यह कहावत बहुत प्राचीन समयसे प्रचलित है इसका अनुकरण बहुतसे जैनेत्तर लोगोनेभी किया और अपने ग्रन्थों में यह ही लिखा है कि ओसवाल 'बाये बावीसे' मे हुवे जैसे 'जाति भास्कर' जाति अन्वेषण, जाति विलासादि पुस्तकोंमे लिखा मिलता है इतनाही नहीं बल्के कई राज तवारिखोंमेंभी इस ज्ञातिकी उत्पत्तिका समय वि. सं. २२२ का लिखा हुआ है इसी माफिक जनसमुहसे यही सुना जाता है कि ओसवाल 'बीयेषावीसे ' में हुए.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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