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रत्नप्रभसूरि का कोरंटपुर में प्रवेश. (८९) हुवा था उक्त ज्ञातियों का इतिहास लिखने में वह वही वडी उपयोगी है । खेर । अब तो सिर्फ कोरंटगच्छीय महात्माओं कि पोसालों रह गई है और वह कोरंटंगच्छ के भावकों की वंसावलियों लिखते है तद्यपि जैन समाज कोरंट गच्छ के आभारी है और उस गच्छ का नाम आज भी अमर है ।।। . आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकश पटन मे भगवान महावीर प्रभु के मन्दिर की प्रतिष्टा करने के बाद कुच्छ रोज वहां पर विराजमान रहै श्रावक वर्ग को पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्य सामायिक प्रतिक्रमण व्रत प्रत्याख्यानादि सब क्रिया प्रतियों व जैन तत्त्वज्ञान-स्याद्वादमयसिद्धान्त का अभ्यास करवा रहे थे.
प्राचार्यरत्नप्रभसूरिने यह सुना था कि मेरे वैक्रय रूप द्वारा कोरंटपुर जाना से वहां के संघ में मेरे प्रति अभाव हो कनकप्रभ मुनि को आचार्य पद प्रदान कीया है वास्ते पहला मुझे वहां जाके उनको शान्त करना जरूरी है कारण गृहक्लेश शासन सेवा मे बाधाए डालनेवाला हुवा करता है इस विचार से आप उपकेशपुरसे विहार कर सिधे ही कोरंटपुर पधार रहे थे आचार्य कनकप्रभसूरि को खबर होते ही सकल संघ के साथ आप बहुत दूर तक सामने गये बडे ही महोत्सवपूर्वक नगर प्रवेश करते समय भगवान् महावीर की यात्रा करी तत्पश्चात् दोनों प्राचार्य एक पाट पर विराजमान हो देशनादि और प्रतिष्टापर आप वैक्रय रूपसे पाने का कारण बतलाया कि तुमतो हमारे गुरुमहाराज के प्रतिबोधित पुराणे श्रावक श्रद्धासंपन्न हो पर वहां के श्रावक बिलकुल नये थे जैन