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जैन जाति महोदय प्र. तीसरा. का नाम “ सञ्चिका रखा था ) को प्राचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रतिबोध दें भगवान महावीर के मन्दिर की अधिष्ठायिक स्थापन करी तब से देवि मांस मदिर छोड सम्यक्त्व को स्वीकार कर लिया, मांस तो क्या पर देवीने ऐसी प्रतिज्ञा कर कह दीया कि आज से मेरे रक्त वर्ण का पुष्प तक भी नहीं वडेगा. और मेरे भक्त जो उपकेशपुर में स्वयंभू महावीर के बिंब (प्रतिमा) की पूजा करते रेहगें आचार्य रत्नप्रभसूरि और इन की संतान की सेवा उपासना करते रहेगें उन के दुःख संकट कों में निवारण करूंगी और विशेष काम पडने पर मुझे जो आराधन करेगा तो में कुमारी कन्या के शरीर मे अवतीर्ण हो आउगी इत्यादि देवी के वचन सुन और भी " श्री सच्चिका देव्या वचनात् क्रमेण श्रुत्व प्रचुरा जनाः श्रावकत्वं प्रतिपन्नाः ” बहुत से लोग जैन धर्म को स्वीकार कर श्रावक बन गये और जैन धर्म का बडा भारी उद्योत हुवा.
उपकेश पट्टन में भगवान महावीर प्रभु का सिखर बद्ध मंदिर तैयार हो गया तत्पश्चात् प्रतिष्ठा का मुहूर्त मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमि गुरुवार को निश्चित हुवा सब सामग्री तैयार हो रही थी। इधर जो चातुर्मास के पूर्व रत्नप्रभसूरि की आज्ञा से ४६५ मुनि विहार किया था उन से कनकप्रभादि कितनेक मुनि कोरंटपुर (कोल्लापटन ) में चतुर्मास किया था आपश्री के उपदेश से वहां के श्रावक वर्गने भगवान् महावीर का नवीन मन्दिर बनवाया जिसके प्रतिष्ठा का मुहूर्त भी मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमि का था तब कोरंट संध एकत्र हो प्राचार्य रत्नप्रभसूरि को आमन्त्रण करने कों आये " तेनावसरे कोरंटकस्य भाषानां अाहानं आगतं " कोरंट संघने आग्रपूर्वक विनंति करी ?