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जैन जाति महोदय
अकस्मात् ध्यानरहित आचार्य के नेत्रों में, चामुंडाने वेदना की, वंदनार्थ आई हुई चकेश्वरी, पद्म वती आदि देवीओंने, चामुंडा का तिरस्कार करते हुए कहा "पापीणी ! मांस मदिरादि हिंसामय प्रवृत्ति द्वारा अधोगति से
_बचानेवाले गुरूदेवसे ऐसा बदला लिया। (पृ ८४) Lakshmi Art, Bombay, 8.