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जैन मन्दिर. .. (७९) हम को मिथ्याजालसे छुडवा के सत्य रास्ता पर लगाये इत्यादि जयजयध्वनी के साथ सभा विसर्जन हुई ।
एक उपकेशपट्टन में ही नहीं किन्तु आसपास में जैसे जैसे जैन धर्मका प्रचार होने लगा वैसे वैसे पाखण्डियां का मिथ्यात्व मार्ग लुप्त होता गया. राजा उपलदेव आदि सूरिजी कि हमेशां सेवा भक्ति उपासन कर व्याख्यान भी सुन रहे थे और आसपासमें जैन धर्मका खूब प्रचार भी कर रहे थे “यथा.राजा तथा प्रजा" सूरिजीने तत्त्वमिमांसा तत्त्वसार मत्तपरिक्षा और विधि विधानादि केइ ग्रन्थ भी निर्माण किये, एक समय राजाने अर्ज करी कि भगवान् ! यहां पाखण्डियोंका चिरकालसे परिचय है स्यात् आपके पधार जानेके बाद फिर भी इनका दाव न लग जावे वास्ते आप ऐसा प्रबन्ध करावे की साधारण जनताकि श्रद्धा जैनधर्मपर सदैव मजबुत बनी रहै । सूरिजीने फरमाया कि इसके लिये दो मुख्य रास्ता है (१) जैन तत्त्वज्ञानका अभ्यास और (२) जैन मन्दिरोंका निर्माण होना । राजाने दोनों वातों का स्वीकार कर एक तरफ तो ज्ञानाभ्यास बढाना शरू कीया, दूसरी एक विशाल पहाडी पर भगवान पार्श्वनाथका मन्दिर बनाना प्रारंभ कर दीया ।
उसी नगरमें ऊहड मंत्री पहले से ही एक नारायणका मन्दिर बना रहा था पर वह दिनकों बनावे और रात्रिमें पुनः गिरजावे, इससे तंग हो मंत्रिने सूरिजीसे इसका कारण पुछा तो सूरिजी महाराजने कहा कि अगर यह मन्दिर भगवान महावीर के नाम से बनाया जाय, तो इसमे कोइ भी देव उपद्रव नहीं करेगा।