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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
पकडा । वह अपने मठों में जाके विशेषशूद्रलोग जो कि बिल्कुल अ ज्ञानी और मांसमदिरा भक्षी और व्यभिचारी थे उन्हकों अपनी झाल में फसा रखने के लिये जैसे तेसे उपदेश दे अपने उपासक बना रखे अर्थात् शुद्र लोग ही उन वाममार्गियों के उपासक रहेथे पर उन पाखण्डियों की पोल खुल जाने से राजा प्रजा कि जैन धर्मपर और भी अधिक दृढ श्रद्धा हो गई उपसंहार में सूरिजीने कहा भव्यो ! हमे आपसे नतो कुच्छ लेना है न कोई आप को धोखा देना है जनता को सत्य रास्ता बतलाना हम हमारा कर्त्तव्य समझ के ही उपदेश करते है जिसको अच्छा लगें वह स्वीकार करें । भगवान् महावीर के 'अहिंसा परमोधर्मः ' रूपी सदुपदेशद्वारा बहुत देशो में ज्ञानका प्रकाश होने से मिथ्यांधकार का नाश हो गया है। हजारो लाखो निरापराधि जीवों की यज्ञमें होती हुई बलि रूप मिथ्या कुरूढ़ियों मूल से नष्ट हो गइ परन्तु यह मरूभूमि की भद्रिक जनता ही अज्ञान दशा व्याप्त हो रही थी पर कल्याण हो आचार्य स्वयंप्रभसूरि का कि वह पद्मावती और श्रीमाल - भिन्नमाल तक अहिंसा का प्रचार कीया, आज आप लोगों का भी अहोभाग्य है कि पवित्र जैन धर्म को स्वीकार कर आत्मकल्यान करने को तत्पर हुवे हो इत्यादि
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राजा उपलदेवने नम्रतापूर्वक अर्ज करी कि हे प्रभो ! भगवान् महावीर और आचार्य स्वयंप्रभसूरि जो कुछ अहिंसा भगवती का कुंडा भूमि पर फरकाया वह महान् उपकार कर गये है, पर हमारे लिये तो आप ही महावीर आप ही आचार्य है कि