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(८०) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. इधर चातुर्मास के दिन नजदीक आ रहे थे जो राजाने प्रारंभ किया था वह मन्दिर तैयार होनेमें बहुत दिन लगनेका संभव था वास्ते उहड मंत्री का मन्दिर को शीघ्रतासे तय्यार करवाया जाय कि वह प्रतिष्ठा सूरिजी महाराज के करकमलोंसे हो, इस वास्ते विशाल संख्यामें मजूर लगाके महावीर प्रभुका मन्दिर इतना शीघ्रतासे तय्यार करवाया कि वह स्वल्पकालमें ही तैयार होने लगा। कारण कि बहुतसा काम तो पहले से ही तय्यार था, इधर संघने अर्ज करी कि हे प्रभो भगवानका मन्दिर तो तैयार होने हैं पर इस्में विराजमान करने के लिये मूर्ति की जरूरत है। सूरिजीने कहा धैर्यता रखो मूर्ति तय्यार हो रही है । इधर क्या हो रहा है कि उहड मंत्रीकी एक गाय जो अमृत सदृश दुद्धकी देने वालिथी उधर लुणाद्री पहाडी के पास एक कैरका झाड था मंत्रिकी गाय वहां जाते ही उसके स्तनोंसे स्वयं ही दुध झर जाता था वहां क्या था कि चमुंडादेवि गायका दुध
और वैलुरेतिसे भगवान महावीर प्रभुका बिंब ( मूर्ति ) तय्यार कर रही थी। पहले सूरिजीसे देवीने अर्ज भी कर दी थी तदानुसार सूरिजीने संघसे कहा था की मूर्ति तय्यार हो रही है पर संघने पहिला कबी जैन मूर्तिका दर्शन न किया था वास्ते दर्शन की बडी भारी आतुरता थी. पर सूरिजीने किसी कारणोसे इस बातका भेद संघको नहीं दीया. इधर गायका दुधके अभाव मंत्रीश्वरने गवालियाकों पुच्छा की गायको दुध कम क्यों होता है ? उसने कहा में इस बातको नहीं जानता हूं कि गायका दुध कमति क्यों होता है मंत्रीश्वरने पुनः पुनः उपालभ देनेसे एकदिन गवाल गायके पीच्छे पच्छे