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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
का मिथ्या घमंड रखते हो क्या पवित्र जैनधर्म्म के सामने व्याभचारी धर्म शास्त्रार्थ तो क्या पर एक शब्द भी उच्चारण करने को समर्थ हो सक्ता है ? अगर तुमारा ऐसा ही आग्रह हो तो हमारे पूज्य गुरुवर्य शास्त्रार्थ करने को भी तय्यार है. इसपर गुस्से से भरे हुवे वाममार्गि लोग बोल उठे कि राजन् ! देरी किसकी है हम तो इसी वास्ते आये है । यह सुनते ही राजा अपने योग्य आदमियों कों सूरिजी के पास भेजे और शास्त्रार्थ के लिये श्रामन्त्रण भी कीया. आदमी ने जाके सूरिजी से सब हाल निवेदन कीया, यह सुनते ही अपने शिष्य मण्डल से सूरिजी महाराज राजसभा में पधार गये । नगर मे इस बात की खबर होते ही सभा एकदम चीकार बद्ध भर गइ | प्रारंभ में ही शैव लोग वडे ही उच्च स्वर से बोल उठे कि हे लोगों ! में आज आमतौर से जाहिर करता हूं कि जैन धर्म एक आधुनकि धर्म है पुनः वह नास्तिक धर्म है. पुनः वह ईश्वर को नहीं मानते है इनके मन्दिरो मे नग्न देव है इत्यादि कहने पर सूरिजी के पास बेठे हुवे मुनियों से वीरधवलोपाध्याय ने गंभीर शब्दो में बडी योग्यता के साथ कहा कि सज्जनों! जैनधर्म आधुनिक नहीं परन्तु प्राचीन धर्म्म है जिस जैन धर्म के विषय में वेद साक्षि दे रहे है, ब्रह्मा विष्णु और महादेवने जैनधर्म के तीर्थकरो कों नमस्कार किया है पुरांणोवालाने भी जैन धर्म को परम पवित्र माना है यजुर्वेद अ० ८ श्रु० २५ में। ऋग्वेद मं. १० अ० ६-८ में । तथा सामवेद और भी अनेक पुरांणों में जैन धर्म कि इतनी प्राचीनता बतलाइ है कि वेद काल के पूर्व जैनों के तीथकरों