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________________ (७१) जन जाति महोदय प्र० तीसरा. राजा उपलदेवादि सब को उत्साहवर्धक धन्यवाद दीया कि हे राजन् ! आप लोगोंका प्रबल पुन्योदय है कि एसे गुरु महाराज का समागम हुवा है आपको कोटीशः धन्यबाद है कि मिथ्या फांसी से छूट के पवित्र धर्म को स्वीकार कीया है आगे के लिये आप शान श्रद्धा पूर्वक इस धर्म का पालनकर अपनि आत्मा का कल्यान करते रहेंगे ऐसा हमको पूर्ण विश्वास है । इसपर राजा उपलदेव उन विद्याधरो का परमोपकार माना और स्वधर्मि भाइ समज महेमान रहने की अर्ज करी, इसपर वह सबलोग आपसमे वात्स ल्यता करते हुवे उन नतन श्रावकों के उत्साह में वृद्धि करी बाद देवियों और विद्याधर सूरिजी को वन्दन नमस्कार कर विसर्जन हुऐ। अब तो उपकेशपुर के घर घरमें जैन धर्म की तारीफ होने लगी और कितनेक इधर उधर गये हुवे क्षत्रियादि लोग थे वह भी आ-आके. जैन धर्म को स्वीकार करने लगे यह वात वाममार्गिमत के अध्यक्षकों के मट्टों तक पहुंच गई कि एक जैन सेबडा आया है वह न जाने राजा प्रजापर क्या जादु डाला कि वह राजा मंत्री व कितनेक लोगों को जैन बना दीया. अगर इस पर कुच्छ प्रयत्न न किया जावेगा तो अपनि तो सब की सब दुकानदारी उठ जावेंगी । यह तो उनको विश्वास था कि राजा व प्रजा कों जैसे हम पाठ पढावेगें वैसे ही मान लेंगे अगर सेवडा ने उसे जैन बनाया तो क्या हुवा, चलो अपन फीरसे शैव बना लेंगें एसा सोच वह सब जमात की जमात सज धज के राज समामें आये, पर जैसे किसीका सर्व श्रेय लुट लेनेसे उन पर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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