SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरिजी महाराज की देशना. . (५) पवित्र सर्वोत्तम धर्मको स्वीकार करो ताकी आप इस लोक परलोकमें सुखके अधिकारी बनों किमधिकम् । सूरिजी महाराजकी अपूर्व और अमृतमय देशना श्रवण कर राजा प्रजा एकदम अजब और आश्चर्यमें गरक बन गये. हर्ष के मारे शरीर रोमांचित हो गये कारण इस के पहले कभी ऐसी उत्तम देशना नहीं सुनी थी। राजा हाथ जोड बोला कि हे प्रभो ! एक तरफ तो हमें बडा भारी दुःख हो रहा है और दूसरी तरफ हर्ष हमारा हृदय में समा नहीं सक्ता है इस का कारण यह है कि हमने दुर्लभ मनुष्यभव पाके सामग्रीके होते हुवे भी कुगुरुओं की वासना की पास में पड हमारा अमूल्य समय निरर्थक खो दीया इतना ही नहीं परन्तु धर्म के नाम से हम अज्ञान लोगोंने अनेक प्रकारके अत्याचार कर मिथ्यात्वरूप पाप की पोठ सिर पर उठाइ वह सब आज आपश्रीका सत्योपदेश श्रवण करने से ज्ञान हुवा है फिर अधिक दुःख इस बातका है कि आप जैसे परमयोगिराज महात्मापुरुषोंका, हमारे यहां विराजना होने पर भी हम हतभाग्य आप के दर्शनतक भी नहीं किये। हे प्रभो! इसका कारण यह था कि हम लोगों को प्रारंभ से ही ऐसे बुरे संस्कार डाल देते है कि जैन नास्तिक है ईश्वर को नहीं मानते है शास्त्रविधिसे यज्ञ करना भी वह निषेध करते है नन देव को पूजते है अहिंसा २ कर जनताके शौर्य पर कुठार चलाते है इत्यादि । पर आज हमारा सौभाग्य है कि आप जैसे परमोपकारी महात्माओंके मुखाबिन्दसे अमृतमय देशना श्रवण करनेका समय
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy