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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
(१०) दशवा व्रतमे दिशादि में रहे हुवे द्रव्यादि पदार्थो के लिये १४ नियम याद करना ।
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(११) ग्यारवा व्रतमें तीथी पर्व के दिन अवश्य करने योग पौषध जो ज्ञानध्यानसे आत्माकों पुष्टि बनाने रूप पौषध करना ।
(१२) बारहवा व्रत - अतिथी महात्माओको सुपात्रदान देना गृहस्थधर्म पालने वालोको हमेशां परमात्मा की पूजा करना, नये नये तीर्थो की यात्रा करना, स्वधर्मिभाइयों के साथ वात्सल्यता और प्रभावना करना, जीवदया के लिये बने वहां तक मार फीराना, जैनमन्दिर जैनमूर्ति ज्ञान, साधु, साध्वियों, श्रावक, श्राविकाओं, एवं सात क्षेत्रमें समर्थ होने पर द्रव्य को खरचना और जिनशासनोन्नति में तनमन और धन लगा देना गृहस्थोंका आचार है इत्यादि यह गृहस्थधर्म साम्राटराजासे लेकर साधारण इन्सान भी धारणकर सुखपूर्वक पालन कर आत्मकल्याण करसकते है.
( ३ ) आगे तीजा दर्जा मुनि धर्म्मका हे मुनिपद की इच्छावाले सर्व प्रकारसे जीवहिंसाका त्याग एवं झूट बोलना चौरी करना मैथुन और परिग्रहका सर्वथा परित्याग करना, सिरका बाल भी हाथोंसे खंचना, पैदल बिहार करना, आत्म कल्याण और परोपकारके सिवाय और कोइ कार्य्य नहीं करना, एसा मुनियोंका आचार है हे राजन् ! इस पवित्र धर्म्मका सेवन करने से भूतकालमें अनंते जीव जरामरण रोगशोक और संसारके सब बंधनसे मुक्त हो सास्वते सुख जो मोक्ष है उस कों प्राप्ति कर लीया था वर्तमान मे कर रहे है और भविष्य में करेगा वास्ते आप सब सज्जन मिथ्या पाखण्ड मतका सर्वथा त्याग कर इस सनातन शुद्ध