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पंचपरमेष्टी.
(३) आचार्य-जो परिहन्त भगवानने जनताका कल्याण के लिये धर्म (शान ) फरमाया है उनका विश्वमें प्रचार करना. मिथ्या अज्ञान व कुसंगत से मोक्ष साधन का रास्ता भूल दुर्गति के रास्ते जाते हुवे प्राणियों को सद्ज्ञान द्वारा सत्य धर्म का रास्ता बतलाना. व शान दर्शन चारित्र तप और वीर्य्य एवं पंचाचार स्वयं पालन करे औरो से पलावे चतुर्विध संघ के अन्दर सुख शान्ति का संचार के साथ शासन की उन्नति करे और भव्य जीवों का कल्याण करने के लिये ही अपना जीवन अर्पण कर चुके है वह प्राचार्य कहलाते हैं.
(४) उपाध्याय-इनका कार्य पठनपाठन करना और दूसरोको करवाना इन के अन्दर सर्वगुण आचार्य के सदृश्य होते है अर्थात् आचार्यश्री के उत्तराधिकारी उपाध्याय हुवा करते है.
(५) साधु-मोक्षमार्ग का साधन करे अर्थात् ज्ञानध्यान तप संयम समिति गुप्ति आदिक अनेक सद्कार्यों द्वारा आत्मसाधन करते हुवे भव्य जीवों का उद्धार करे । हे राजन् ! यह साधु पद एक महान् पुरुषों की खान है जो कि अरिहंत सिद्ध भाचार्य और उपाध्याय यह सब इस. साधु पद से ही प्राप्त होते है इन पंच परमेष्टि का इष्ट रखने से जीवों की सद्गति होती है.
हे राजन् ! जैन धर्म पालन करने वालों के मुख्य वीन दर्जा वतलाया है. (१) सम्यक्त्ववत् (२) देशप्रति गृहस्थधर्म (३) सर्वव्रती मुनिधर्म, जिस्मे सम्यग् दृष्टि तो उसको कहते है कि