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जैनजातिमहोदय. वर्षों का अन्तर है अतएव उन की ऐतिहासिक प्रामाणिकता केवल एक इसी बात पर निर्भर एवं अवलम्बित हैं कि वे घटनाएँ प्रकृति के नियमानुकूल सम्भवित हों। उपर्युक्त सिद्धान्त को लक्ष में रख के लिखा हुआ इतिहास में इस बात का संशय उत्पन्न नहीं होता कि ये ऐतिहासिक सत्य घटनाएँ नहीं हैं अपितु केवल ऐसे शास्त्रों के साधन द्वारा ही हम अपने अतीत के इतिहास को जान सकते हैं । बड़ी मूर्खता होगी यदि हम इस प्रकार के उपलब्ध हुए प्राचीन शास्त्रीय ग्रंथों में कथित प्राकृतिक सम्भवित बातों के द्वारा अपने प्राचीन इतिहास का निर्माण न करें । केवल यही एक साधन उपस्थित है जिसके द्वारा हम अपने प्राचीन गौरव को ग्रहण करने में समर्थ होते हैं अतएव इस प्रकार का सहारा हमारे लिये परमोपयोगी है।
___ सब से पहले यह जानना आवश्यक है कि जैन धर्म का इतिहास कब से प्रारम्भ होता है ? इस सम्बन्ध में इस ग्रंथ के प्रथम खण्ड के द्वितीय प्रकरण के प्रारम्भ में समय का निश्चय किया गया है उस के अनुसार वर्तमान अवसर्पिणी के प्रारम्भ से भगवान ऋषभदेव के समय से हमारा वर्तमान इतिहास प्रारम्भ होता है । तब से आज तक को सर्व मान्य प्रामाणिक इतिहास का प्रगट करने की मेरी इच्छा कई दिनों से थी । किन्तु यह एक कोई साधारण कार्य नहीं था कि सहसा प्रारम्भ कर दिया जाता । मैंने जैन धर्म और जैन जाति के इतिहास को लिखने का कार्य शुरु किया और " जैन जाति महोदय " नामक