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प्रस्तावना.
ग्रंथ विस्तृतरूप में तैयार करने के लिये तद विषयक अध्ययन प्रारम्भ किया जिम के फलस्वरूप इस ग्रंथ का प्रथम ग्वण्ड पाठकों के सन्मुग्ब रखता हूँ। इस खण्ड में छ प्रकरण हैं । शेष उन्नीरा प्रकरण दूसरे, तीसरे, और चौथे बण्ड में क्रम से प्रकाशित होंगे।
___ " जैन जाति महोदय" नाम इस ग्रंथ का इस कारण से रखना उचित समझा गया कि जैनियों की जातियों ने समय ममय अपना अभ्युदय इतना किया कि वे विश्वव्यापी तक बन गई । प्रारम्भ में जैनियों का इतिहास भगवान ऋषभदेव स्वामी मे शुरु होता है । ऋषभदेव जिनका एक नाम आदिनाथ भी है क्या हिन्दू और क्या मुसलमान इन्हें जगत् पूज्य परमेश्वर मानते है । हिन्दू धर्म के पर्व मान्य ग्रंथ श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध में भगवान ऋषभदेव का विस्तृत वर्णन उल्लेख किया हुआ है । मुसलमान लोग इन्हें ' आदिम बाबा ' के नाम से पुकारते हैं । ' आदिम से उनका मतलब इन्हीं आदिनाथ या ऋषभ देव मे है । पुराण और कुरान से भी जैन शास्त्र बहुत पुराने है जिन में ऋषभदेव को प्रथम तीर्थंकर माना है। अतएव ऋषभदेवस्वामी को हिन्दू और मुमलमानों ने भी अपनाया है।
. भगवान ऋषभदेव से लेकर नव में तीर्थंकर सुविधिनाथ के शामन तक तो सारे विश्व का एक ही जैन धर्म था। उस के बाद ही काल की कुटल गति के प्रताप से अनेक मत मतान्तर उत्पन्न हुए
और लुप्त भी होते गये या उनके स्थान में फिर दूसरे नये मतों का प्रादुर्भाव होता गया। समाज शृंखलना शिथिल पड़ी । उम समय