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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
पट्टावलियोंसे पता मिलता है कि चन्द्रावती में ३०० जैनमन्दिर देवभुवनके सादृश्य थे आज उसका खन्डहर मात्र रह गयें है यह समय की ही बलीहारी है।
इधर भिन्नमाल नगर शिवोपासकों व वाममार्गियों का नगर बन गया वहांके कर्ता हर्ता सब ब्राह्मण ही थे, राजा भीमसेन तो एक नामका ही राजा था राजा भीमसेनके दो पुत्र थे एक श्रीपुंज दूसरा उपलदेव पटावली नं. ३ में लिखा है कि भीमसेनका पुत्र श्रीपुंज
और श्रीपुंज का पुत्र सुरसुंदर ओर उपलदेव था । पर समय का मीलान करनेसे पहली पट्टावलीका कथन ठीक मीलता हुवा है । महाराज भीमसेनके महामात्य चन्द्रवंशीय सुवड था उसके छोटाभाइका नाम उहड था सुवड के पास अठारा क्रोडका द्रव्य होनेसे वह पहला प्रकोट में ओर उहड के पस नीनाणवे लक्षका द्रव्य होनेसे वह दूसरा कोंटमे बसता था एक समय उहड के शरीरमे तकलीफ होनेसे यह विचार हुवा कि हम दो भाइ होने पर भी एक दूसरे के दुःख सुखमें काम नहीं आते हैं वास्ते एक लक्ष द्रव्य वृद्ध भाइसे ले मैं क्रोडपति हो पहले प्रकोट में जा वसुं. सुवह उहड अपने भाई के पास जा के एक लक्ष द्रव्य की याचना करी इसपर भाईने कहा की तुमारे विगर प्रकोट शुन्य नहीं है ( दूसरी पट्टावली मे लिखा है की भाई की
ओरत ने एसा कहां ) कि तुम करज ले क्रोडपति होनेकी कौशीस करते हों इत्यादि यह अभिमान का वचन उहड को बडा दुःखदाई हुवा झट वहांसे निकल के अपने मकानपर पाया और एक लक्ष द्रव्य पैदा करनेका उपाय सोचने लगा.