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________________ चन्द्रावती नगरी की स्थापना. (४५) नामका मंत्रीको साथले बुकी तरफ चले गये वहांपर एक उन्नत भूमि देख शुभशुकन - मुहूर्त्त में नगरी वसाना प्रारंभ करदीया बाद श्रीमाल नगरसे ७२००० घर जिस्मे ५५०० घर तो अर्बाधिप और १०००० घर करीबन क्रोडपति थे वह सभी अपने कुटम्ब सह उस नूतन नगरीमें प्रागये । उस नगरीका नाम चन्द्रसेन राजाके नामपर चन्द्रावती रख दीया प्रजाका अच्छा जमाव होनेपर चन्द्रसेनको वहांका राजपद दे राज अभिषेक कर दीया नगरीकी आबादी इस कदरसे हुइ की स्वल्प समय में स्वर्ग सदृश बन गइ राजा चन्द्रसेन के पुत्र शिवसेनने पास ही में शिवपुरी नगरी बसादी वह भी अच्छी उन्नतिपर बस गइ. इधर श्रीमालनगरमे जो शिवोपासक थे वह ही लोग रह गये नगरकी हालत देख राजा भीमसेनने सोचा की ब्राह्मणों के धोखा में श्राके मेने यह अच्छा नहीं किया कि मेरे राजकी यह दशा हुई इत्यादि । पर वीतीवातको अब पश्चाताप कग्नेसे क्या होता है रहे हुवे airat के लिये उस श्रीमालनगरके तीन प्रकोट बनाये पहले प्रकोट में क्रोडाघीप दूसरा में लक्षाधिपति, तीसग में साधारण लोग एसी रचना करके श्रीमालनगरका नाम भीनमाल रखदीया जोकी राजा भीमसेन की स्मृतिके लीये कारण उधर चन्द्रसेनने अपने नामपर चन्द्रावती नगरी प्राबाद करीथी । चन्द्रसेनने चन्द्रावती नगरी में अनेक मन्दिर बनाये | जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य स्वयंप्रभसूरि के करकमलोंसे हुइ थी 1 श्रस्तु चन्द्रावती नगरी विक्रमकी बारहवीं तेरहवीं शताब्दी तक तो बडी आबाद थी ३६० घरतो केवल करोडपतियों के ही थे और प्रत्येक करोडपतियों की तरफ से हमेश स्वामीवात्सल्य हुवा करता था ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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