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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
होगा ? सूरिजीने देविकी विनंति को स्वीकार कर कहा की ठीक मुनियों को तों जहां लाभ हो वहां ही विहार करना चाहिये इत्यादि सन्मानित वचनो से देवीको संतुष्ट कर श्राप अपने ५०० मुनियों के साथ मरुभूमि की तरफ विहार किया ।
उपकेशपट्टन (हालमेजिसकोशीया नगरी कहते है ) की स्थापना-इधर श्रीमालनगरका राजा जयसेन जैनधर्म्मका पालन करता हुवा अनेक पुन्य कार्य कीया पट्टावलि नम्बर ३ मे लिखा है कि जयसेनराजाने अपने जीवन मे १८०० जीर्णमन्दिरों का उद्धार और ३०० नये मन्दिर ६४ वाग् तीर्थो का संघ निकाला और कुवे तलाव वावडीयों वगरह करवा के धर्म व देश की बहुत सेवा कर अनंत पुन्योपार्जन कीया विशेष आपका लक्ष स्वधर्मीयों की तरफ अधिक था. जैनधर्म पालन करनेवालों कि संख्या मे आपने खूब ही वृद्धि करी जयसेनराजा के दो राणि थी बडी का पुत्र भीमसेन छोटी का चन्द्रसेन जिसमें भीमसेन तो पनि माताके गुरु ब्राह्मणों के परिचयसे शिवलिंगोपासक था और चन्द्रसेन परम जैनोपासक था. दोनों भाइयों में कभी कभी धर्मवाद हुवा करता था. कभी कभी तो वह धर्म्मवाद इतना जोर पकड़ लेता था की एक दूसरा का अपमान करने में भी पीच्छे नहीं हटते. थे ?
यह हाल राजा जयसेन तक पहुंचनेपर राज । को बडा भारी रंज हुवा भविष्य के लिये गजा विचार में पड गया कि भीमसेन बड़ा है पर इसकों राज दे दीया जाय तो वह धम्मन्धिता के मारा और ब्राह्मणों की पक्षपातमे पड जैन धर्म्म ओर जैनोपासकोंका -