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( २८ ) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. इनको श्रीमालवंसी कहने लगे और वह ही शब्द भविष्य मे ज्ञाति के रूपमें प्रणित हुवा इति श्रीमाल ज्ञाति । इसके लिये देखो परिशिष्ट नं. ३.
श्रीमालनगर के लोग जैनधर्म के तत्त्वज्ञान और क्रिया समाचारी का अभ्यास के लिये सूरीश्वरजीसे प्रार्थना करी और आचार्यश्रीने उसे सहर्ष स्वीकार भी करली और अपने कितनेक मुनियों को वहाँ कुच्छ अरसा के लिये ठरने कि आज्ञा भी फरमा दी.
उसी रोज समाचार मिला की आबु के पास पद्मावती नारी में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा का अश्वमेघ नाम का महायज्ञ है. यह हाल सुनते ही श्राद्धवर्ग एकत्र हो श्याम को आचार्यश्री के पास
आये और अर्ज करी की भगवान् ! आपश्री का पवित्र आगमन से हजारों लाखों प्राणियों को अभयदान मिला जो क्रूर कर्मि व्यमिचारी और यज्ञ बलीदान जैसे मिथ्याचरणाओंसे नरक में जानेवाले जीवों को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई स्वर्ग व मोक्षका रहस्ता मिला, पवित्र जैनधर्म की वडी भारी प्रभावना हुई हे दयाल ! करूणासिन्धु ! अपके उपकार का बदला इस भवमें तो क्यापर भवोभव में देनेको हमलोग सर्वता असमर्थ है आपश्री के चरण कमलों की सेवा उपासना एक क्षणभर भी हमलोग छोडना नहीं चाहाते है पर इस समय एक अर्ज करना हम लोग खास जरूरी समझते है वह यह है की आबु के पास पद्मावती नगर है वहाँका गजा पद्मसेनने देविका उपद्रव को शान्ति के लिये अश्वमेघ नामक