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शास्त्रार्थ. . (२३) के इरादा से ही मारते हो तो पहला आप के मातापिता पुत्र स्त्रि बालबचादि को स्वर्ग भेजना चाहिये ।
महानुभावों । आप जरा ज्ञान दृष्टि से विचारों कियूपंछित्वा पशून हत्वाः कृत्वारुधिर कर्दमम् । यद्येव गम्यते स्वर्गे । नरके केन गम्यते ॥
प्राणियों के रूधिर का कर्दम करने वाले भी स्वर्ग में जावेगे ? तब नरक में कोन जावेगें हे राजन् । इस निष्ठुर वृति से जनतामें शान्ति नहीं पर अशान्ति होती है देखिये.
हिंसा विघ्नाय जायते । विघ्नशान्त्यै कृताऽपि हि ।
कुलाचारधियाऽप्येपा । कृता कुलविनाशिनी" ॥ - याने विघ्न की शान्ति के लिये की हुई हिंसा शान्ति नहीं पर उलटी विघ्न की ही करनेवाली होती है जैसे किसी के कुलकी मिथ्याम्ढि है कि अमुक दिन हिंसा करनी चाहिये, पर वह हिंसा ही कुल नाश करनेवाली होती है । हे नरेश । कितनेक एसे लोग भी होते है कि उस निष्ठुर कर्म को भी अपने कुल परंपरा से चला हुवा समम उसको छोडने मे हिचकते है पर बुद्धिवान् अहितकारी कर्म को शीघ्र ही छोड के सुखी बन जाते है जैसे ।
अपि वंशक्रमायातां यस्तु हिंसा परित्यजेत् । सश्रेष्टः सुलस इव काल सौकरिकात्मजः ।।
हे राजन् । प्राणियों की हिंसा करने मे किसी शास्त्रकारोने धर्म नहीं बतलाया है आप खुद बुद्धि से विचार करोगे तो ज्ञात होगा कि