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जैन जातिमहोदय.
कब और किस कारण से शिथिल हुई, जातियाँ का पारस्परिक ' भेद भाव का विषैला अंकुर कब वपन हुआ, फूट आदि दुर्गुण कब और कैसे फैल कर किस जाति या समाज को किस प्रकार अवनति के गहरे गडे में डाल गये इत्यादि भिन्न भिन्न बातों का ज्ञान केवल इतिहास के द्वारा ही हो सकता है जिनके जान बिना समाज और धर्म में फैली हुई विषमता किसी भी प्रकार दूर नहीं की जा सकती। इससे और ऐसी ही अनेक बातों के कारण यह सिद्ध होता है कि इतिहान का होना तथा उसका जानना सब के लिय बहुत जरूरी है।
यह कथन सर्वथा तथ्य है कि यदि किसी देश को न माना हो तो उसका इतिहास नष्ट कर देना ही पयाप्त है। यही कारण है कि भारत की यह अधोगति हो रही है । इसका इतिहाम अंधेरे गर्न में अप्रकटरूप में पढ़ा है अतएव भारत की जैसी कद्र होना चाहिये आज विश्व में नहीं होमकी। भारत का सच्चा हतिजान आज अप्रकट तथा काल के गर्भ में है। जिस दिन भारत का मचा इतिहास प्रकट होगा भारत के पराधीनता बंन्धन पलभर में ढीले पड़ जायेंगे और यह स्वतंत्रता का सुख सहज ही में प्राप्त कर सकेगा।
किन्तु जब हम जैनियों के इतिहास की ओर दृष्टिपात करते हैं तो कुछ कहते ही नहीं बनता । जैन धर्म के विषय में तथा जैन जाति के बारे में ऐसी ऐसी भ्रमपूर्ण कल्पनाएं और विभन्न मन विश्व भर में फैले हुए हैं कि जिनके कारण जैन जाति और जैन धर्म का महत्व बिलकुल अधेरे में है । संसार के सामने जैनियों