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________________ प्रस्तावना. . (३) का स्तुत्य एवं प्रशंशनीय कार्य करता है अन्यथा इस के अभाव में भविष्य की राह में ऐसी ऐसी उलझने उपस्थित होती हैं कि जिनसे पिण्ड छुडाना दुष्कर हो जाता है । इतिहास के भूत द्वारा वर्तमान में ही हमें भविष्य का भान हो जाता है, इस से अधिक हम और क्या चाह सकते हैं। हमारे लिये केवल एक इतिहास ही उत्तम साधन है जिस के मनन के फळ स्वरूप यदि हम चाहें तो अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं । इतिहास मे ही हमें मालूम हो सकता है कि हमारा अतीत कैसा था ? तब जातियाँ की नैतिक, सामाजिक और धार्मिक प्रवृति कैसी थी तथा किन किन परिस्थितियों में किस प्रकार जानियाँ का निर्माण हुआ था। किस किस जातिन चरन सीमा तक उन्नति की तथा किन किन वीर पुरुषों ने कब देश, समाज, धर्म और जाति के लिये अपना सर्वस्व तक बलिदान कर दिया जिस के कारण कि उनकी कमनीय कीर्ति विश्वभरमें फैल गई थी प्राचीन काल का प्राचार, विचार, आहार, कला कौशल व्यापार, मभ्यता एवं विविध भांति से किस प्रकार जीवन निर्वाह तथा आत्मकल्याण होता था आदि आदि बातों का ज्ञान इतिहासद्वारा ही होता है। हम अपने पूर्वजों की शूरता, वीरता, गंभी रता, धीरता, महत्ता, परोपकारिता और सहनशीलता का ज्ञान इतिहास के द्वारा ही जान सकते हैं। किसी देश या जाति के निर्माण का समय या उसके पतन का बीजारोपण किस प्रकार हुआ वा धर्म तथा समाज की श्रृङ्खला
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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