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श्रीमाल की विनंति. . (१७) सिद्धाचलजी की यात्राकर अर्बुदाचलकी यात्रा करनेको आये थे वहांपर व्यापार निमित्त आये हुवे श्रीमालनगर के कितनेक शेठ साहुकार सूरिजी की अहिंसामय अपूर्व देशना सुनकर सूरिजी से विनंति करी कि हे भगवान् ! आप तो अहिंसा भगवती का बड़ा भारी महत्व वतला रहे हो और हमारे वहां तो प्रत्येक वर्ष में हजारो लाखो पशुओं का यज्ञमें बलिदान हो रहा है और उसमें ही जनता की शान्ति और धर्म माना जाता है आज आप का उपदेश श्रवण करनेसे यह ज्ञात हुवा है कि यह एक महान् नरक का ही द्वार है अगर आप जैसे परोपकारी महा स्माओं का पधारना हमारे जैसे अपठिन देशमें हो तो वहां की भद्रिक जनता आप के उपदेश का महान् लाभ अवश्य उटावे इत्यादि विनंति करनेपर सूरिजीने उसे सहर्ष स्वीकार कर ली जैसे चितसाग्थी की विनंति को कैशीश्रमणाचार्यने स्वीकार करी थी । समय पाके सूरिजी क्रमशः विहार कर श्रीमालनगर के उद्यान में पधार गये, क्रमशः यह खबर नगर में भी पहुंच गई तब जिन्होंने अर्बुदाचल पर विनंति करी थी वह सज्जन अपने मित्रों के साथ सूरिजी की सेवा उपासना करने को तत्पर हुवे और सब तरह की अनुकूलता करदी । उस समय श्रीमालनगर में अश्वमेघ नामक यज्ञ की तैयारिये हो रही थी देश विदेश के हजारों याज्ञिक लोग एकत्र हुवे इधर हजारों लाखो निरापराधि पशुओं को एकत्र कीये गये थे एक वडा भारी यज्ञ मण्डप भी रचा गया था घर घर में बकारे मैंसे बन्धे हुवे है कि उनको धर्म के नाम पर यज्ञ में बलिदान कर शान्ति मनावेंगे इत्यादि । इधर सूरिजी के शिष्य नगर में भिक्षा को गये। नगर का हाल देख जनतापर कारुण्यभाव लाते हुवे वैसे के तैसे