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________________ (१२) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. पवित्र रत्नकुल' से चैत्र शुक्ल १३ को भगवान महावीरका जन्म हुवा छप्पन्न दिगकुमारीकाअोने सुतिकाकर्म और अनेक देवदेवियोंके साथ चोसठ इन्द्रोंने सुमेरूगिरिपर भगवान का जन्म महोत्सव किया तत्पश्चात् राजा सिद्धार्थने भी जन्ममहोत्सव वडे ही धामधूम पूर्वक किया. भगवान् के जीवन पवनसे ही जगतका वायुमण्डलमें परिवर्तन होने लगा, क्रमशः शान्ति भी फैलती गई आपका गृहवासका जीवन भी इतना उत्तम और पवित्र है कि जनतामें शुभभावोंका स्वयं सञ्चार होने लगा। इधर भगवान केशीश्रमणाचार्य अपने श्रमण संघकी एक वैराट सभाकर उनका कर्तव्यपर इतना तो जोरदार अर्थात् असरकारी सचोट उपदेश दीया, उन प्रभावशाली उपदेश का फल यह हुवा कि श्रमण संघने शिथिलताको त्याग कर फट देविका मंह काला कर देशनिकाला दिया ओर अपना कर्तव्य पर कम्मर कस तय्यार होगये प्राचार्यश्रीने उन श्रमणसंघ को निम्नलिखित विहार करनेकी आज्ञाए फरमाई । ५०० मुनियोंसे वैकुटाचार्यको कर्णाट तैलंगदेशकी तरफ ५०० मुनियोंसे कालिकपुत्राचार्य दक्षिण महागष्ट्रीय ,, ६०० मुनियोंसे गर्गाचार्य सिन्धुसोवीरकी , ०० ,, ,, यवाचार्य काशीकोशलकी , ५०० , , अर्हन्नाचार्य अंगवंगकी , ०० , , काश्यपाचार्य संयुक्तपान्त , ५०० ,, शिवाचार्य अवंतिकी इनके सिवाय अन्योअन्य प्रान्तोंमे थोडी थोडी संख्यामें मुनि
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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