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________________ Marati मुनि और बौधधर्म. ( १३ ) rist विहार करवाके श्राप हजारमुनियों के साथ मागधदेश व उनके आसपास के प्रदेशमें विहार किया मानो इन श्रमण संघने जगत्का उद्धार करनेका एक कंट्राक्ट ही लिया हो आपश्रीके उपदेशकी असर जनतापर इस कदर की हुई कि भुली हुई दुनियों सिधी सडकप‍ आगई । यज्ञ जैसे निष्ठुर कर्म्ममें निरापराधि श्रसंख्य प्राणीयों का बलीदान होता था उसे बन्धकर जैनधर्मका सरण ले प्रात्मकल्यान करने लगी । श्राचार्यश्री वह आपके श्राज्ञावत्ति मुनियों के सदुपदेश का फल यह हुवा की राजा चेटक, दधिवाहन, सिद्धार्थ, विजयसेन, चन्द्रपाल, दिनशत्रु, प्रसन्नजीत, ऊदाई धर्म्मशील सतानिक जयकेतु दर्शानभद्र र प्रदेशी आदि अनेक राजानों और साधारण जनताकों प्रतिबोध दे जैनधर्मके परमोपासक बनाये इत्यादि । प्राचार्य केशी श्रमणके शासन में एक पेहित नामक मुनिका शिष्य जिसका नाम ' बुद्धकीर्ति ' था वह किसी कारण से समुदायसे अपमानित हो अपनी अलग खीचडी पकानी चाहता था और इसके लिये बहुत कुच्छ तपश्चर्या आदि प्रयत्न कीया पर उसमें वह सफल नहीं हुवा आखिर " श्रहिंसा परमो धर्मः " का सरण ले अपने नामसे ' बौधे ' धर्म प्रचलित कीया । बुद्धने अपने धर्म के १ जैन श्वेताम्बर ग्राम्नाय के आचारांग सूत्र की टीकामें बुद्ध धर्म का प्रवर्तक मुल पुरुष बुद्धकीर्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में एक साधु था जिसने बौद्धधर्म चलाया. २ दिगम्बर प्राम्नायका दर्शनसार नामका ग्रन्थमें लिखा है कि पार्श्वनाथ के तीर्थ में पिहित मुनिका शिष्य बुद्धकीर्ति साधु जैन धर्म से पतित हो मांसमदिराकी आचरणा करता हुवा अपना नामसे बोध्ध धर्म्म चलाया है.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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