________________
इतिहासिक घटनाएं.
( ११ ) क्षत्रिय वर्ग अर्थात् केइ राजा महाराजा उन स्वार्थप्रिय ब्राह्मणों के हाथ के कटपुतले बनके अपने कर्त्तव्य से च्युत हो गये थे । हजारों लाखों निरपराधि प्राणियोंके रक्तकी नदियां बहा रहे थे. समाजका राजबंड अत्याचारियों के हाथमें जा पडा था, सत्ता अहंकारकी गुलाम बन गई थी सत्ताधारी अपनि सत्ताका दुरूपयोग कर रहे थे बलवान् निर्बलोंपर अपनि सत्ता जमा रहे थे । शूद्र वर्ण के लोग तो घास फूसकी तरह माने जा रहे थे । धर्म्मपर स्वार्थका साम्राज्य था । कर्त्तव्य सत्ताका गुलाम बन बैठाथा. करूणा पैशाचत्वका रूपको धारण कर रही थी. समाजने अपना मनुष्यत्वको अत्याचार पर बलीदान कर रखाथा. प्रेम ऐक्यताका नाम तो केवल प्राचीन ग्रन्थों में ही रह गया था. इत्यादि ब्राह्मणोंकी अनुचित्त सत्ता मानों समाजमें त्राहि त्राहि मचांदीथी उस जमाना में समाजमें मानों एक अग्नि की भट्टी भभक उठी थी इस हालत में समाज एक जगतोद्धारक महान पुरुषकी प्रतिक्षा कर रही हो तो वह स्वाभावीक बात है जब जब समाजिक और धार्मीक दशाका पतन होता है। तत्र तब किसी न किसी महात्माका अवतार हुवाही करता है.
उसी समय जगतोद्धारक, जगदीश्वर, करूणासिन्धु, शान्तिके सागर, चग्मतीर्थकर, भगवान् महावीग्ने, अवतार धारण किया, जिन्ह महात्मा महावीरका जीवन चारित्रवडे बडे प्रन्थोंद्वारा प्रकाशित हो चुका है तथापि संक्षिप्त यहाँपर भी परिचय करवा देना समुचित होगा । क्षत्रिकुण्ड नगर महाराजा, सिद्धार्थ के त्रिसलादेवी राणि की