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(१०) जैन जाति महोदय प्र० तीसरा. त्वरुप अंधकारका नाश करते हुवे भूमण्डलपर विहार करने लगें इधर दक्षिणविहारी लोहिताचार्य का स्वर्गवास हो जाने के बाद मुनिवर्गमें निर्नायकता के कारण आपुसमें फूट शिथिलता पड जानेसे अन्य लोगों को अवकाश मिल जाना यह स्वभाविक बात है वह भी अपना पगपसारा करना सरु करदीया मतमतान्तरोंके वादविवादमें प्रात्मशक्तियों का दुरुपयोग होने लगा. यज्ञ कर्म और पशु हिंसकों का फिर जोर वढने लगा धार्मिक और सामाजिक श्रृंखलनायेंमें भी परावर्तन होने लगा. ____ यह सब हाल उत्तर भारतमें रहे हुवे केशीश्रमणाचार्यने सुना तब दक्षिण भारतमें विहारकरनेवाले मुनियोंको अपने पास बुलवा लिये तथापि कितनेक मुनि वहाँपर रह भी गये थे. दक्षिणविहारी . मुनि उत्तरमें आने पर कुच्छ अरसा के बाद वहां भी वह ही . हालत हुई कि जो दक्षिणमे थी । इधर आचार्यश्री घर की बिगडी सुधारने में लग रहे थे तब उधर पशुहिंसक यज्ञवादीयोंने अपना पन मजबुत करनेमें प्रयत्नशील बन यज्ञका प्रचार करने लगे. घरकी फूटके परिणाम एसे ही हुवे करते है उस समय भारतीय सामाजिक दृश्य कुच्छ विचित्र प्रकार का था. __आज इतिहासकी शोधखोजसे पता मिलता है कि वह जमाना भारतवर्षके लिये बडा ही विकट-भीषण था सामाजिक नैतिक
और धार्मिक श्रृंखलनाए इतनी तो शिथिल पड गइ थी जिसकी भयंकर दशा समाजको भस्म बना रहीथी उस जमानाका विशेष कारबार ब्राह्मणोंके हस्तगत था, ब्राह्मण अपने ब्राह्मणत्वकों भुल बैठे थे स्वार्थके कीचड में फंस के समाजकों उलटे राहस्ते लेजा रहे थे.