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________________ केशीकुमार की दीक्षा. ( ९ ) सांसारिक राजसम्पदा सब कारागृह सदृश ही है कुमर तो परम वैराग्य भावको प्राप्त हो मुनिश्रीसे अर्ज करी की हे भगवान् ! मेरे मातापिता की आज्ञा ले में आपके पास दीक्षा लुंगा । मुनिने कहा 'जहा सुखम् ' तत्पश्चात् - मुनिको वन्दन कर अपने मकानपर आया मातापितासे दीक्षा की जा मांगी पर १० वर्षका बालक दीक्षामें क्या समजे एसा जान मातापिताने एक किस्म की हांसी समजली प जब कुमरका मुस्वसे ज्ञानमय वैराग्य रस रंगमे रंगित शब्द सुना तब मातापिता खुद ही संसारको असार जान बडा पुत्रकों राजदे आप अपने यारा पुत्र केशी कुमार को साथ ले विदेशी मुनिके पास बडे आडम्बर के साथ जैन दीक्षा धारण कर ली. जयसेन राजर्षि और अनंगसुन्दरी आर्यिका ज्ञान ध्यान तप संयमसे आत्म कल्यान करने लगे । इधर केशीकुमार श्रमण जातिस्मरण ज्ञानसे जो पूर्व भवमें पढा हुवा ज्ञानका स्मरण करते ही सब ज्ञान स्मृतिमें आ गया तथा विशेषमें ज्ञानाभ्यास करता हुवा स्वल्प समय में श्रुत समुद्र का पा गामी हो गया । आचार्य आर्यसमुद्रसूरि अपने जीवन कालमें शासन की अच्छी उन्नति कर अपनि अन्तिमावस्था जान केशीश्रमण को अपने पद पर नियुक्तकर आपश्री सिद्धक्षेत्रपर संलेखनां करते हुवे १५ दिनोंका अनसन पूर्वक स्वर्गगमन कीया इति तीसरा पाट. ( ४ ) आचार्य समुद्रसूरि के पाट पर आर्य्यकेशीश्रमणाचार्य बालब्रह्मचारी अनेक विद्याओं के पारगामि देव देवियांसे पूजित अपने निर्मल ज्ञानरूपी सूर्य का प्रकाशसे भव्यों के मिथ्या
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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