SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर. ( ७७ ) (६) सर्व तीर्थकरों के मुनि आर्यिकाए श्रावक और श्राविकाए की संख्या बतलाइ है वह तीर्थकरों के मोजुदगी में थे वह भी उच्च कोटि सर्वोत्कृष्ट व्रत के पालन करनेवालों कि जैसे मुनि उत्तम ग्रन्थादि की रचना और श्रावक बारहा व्रत और प्रतिमा धारण करनेवालों की समझना साधारण तय तो जैनधर्म विश्वव्यापि था. भगवान् ऋषभदेव से नौत्रा सुविधिनाथ के शासन तक तों सम्पूर्ण जगत् का धर्म एक जैन ही था तत्पश्चात् भी प्रवल्यता जैनधर्म की ही थी. अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर प्रभु के उपासक चालीस क्रोड जनता जैनधर्म पालन कर रही थीचौबीस तीर्थंकर बारह चक्रवर्ति नौ बलदेव नौ वासुदेव नौ प्रतिवासुदेव इन त्रिषष्टि पुरुषों का पवित्र चारित्र विस्तार पूर्वक पढना चाहे वह त्रिष्टि सिलाका पुरुष चारित्र जो संस्कृत और भाषा दोनो में मुद्रित हो चुका है उस को मगवा कर पढे, प्रस्तुत चारित्र में केवल धार्मिक विषय ही नहीं पर साथ में नैतिक समाजिक और व्यवहारिक विषयपर भी वडे वडे व्याख्यान है. इति तीर्थकर चरित्र समाप्तम् । ∞∞∞∞∞x0x002 000000 इति जैनजाति महोदय द्वितीय प्रकरण समाप्तम्. 0000000300ccoco∞∞∞∞
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy