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जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा.
लित थी पर सूर्य (जैनधर्म्म) का प्रकाश के सामने तारों का तेज हमेशा माखा पड़ जाता है ।
भगवान् महावीरदेवका निर्वाण |
भगवान् महावीर प्रभु कैवल्यावस्था में तीस वर्ष भूमण्डलपर भ्रमन कर हजारो लाखो नहीं पर क्रोडों मनुष्यों को अशान्ति का आवेग से बचा के शान्ति की सिधी सडक पर ले
ये । असंख्य दीन, मुक, निरपराधि प्राणियों को अभयदान प्रदान कर अहिंसा परमोधर्म का झंडा भूमण्डल पर करका दीया नैतिक, समाजिक और धार्मिक तुटि हुई श्रृंखला का सर्वाङ्ग सुन्दर बनाया. अनेक राजा महाराजा. नवयुवक राजकुमार - राजअन्तेउर, शेठ साहुकारों कों जैन धर्मकी दीक्षा दे मोक्ष के अधिकारी बनाये. अनेक भव्यों को गृहस्थ धर्म के व्रत दीयं इत्यादि.
बारहा चतुर्मास राजगृह नगर में, एकादश त्रिशाला वाणिया प्राम मे, छ मथुरा, और अन्तिम चातुर्मास पावापुरी नगरी के राजा हस्तपाल की रथशाला मे किया - मुनि आर्यिकाए श्रावक श्राविका अनक राजा महाराज देव देदेन्द्र नर नरेंन्द्रों से परिपूजित भगवान् महावीर प्रभु कार्तिक कृष्ण अमावश्या की मध्य रात्रि में शेर्पा नाममात्र रहे हुए अघातिचार कर्मो का नाश कर अर्थात् सकल कर्मोपाधि से मुक्त हो भगवान् महावीरदेव मोक्ष पधार गये । जिम रात्रि में भगवान् महावीर प्रभु का मोक्ष हुवा उसी रात्रि मे देव देवियों सहित इन्द्रोंने भगवान् का निर्वाण
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