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________________ ( ७२ ) जैन जाति महोदय प्रकरण दूसरा. उन स्वार्थप्रिय ब्राह्मणों के हाथ में ही थे वास्ते संसारमर में यह विषय क्रियाकाण्ड का साम्राज्य जमा दिया उन की प्राबल्यता भारत के चारों और फैली हुई थी पशुवधमय अनेक ग्रन्थ रच जनता को अपनि मिथ्या माल में जकड दी थी. उन माल को तोडनेवाला भगवान् महावीर के सिवाय कोई नहीं थे अर्थात् ब्राह्मणों के वेदान्तिक धर्म पर भगवान महावीरने ऐसी छाप मारी कि जनता उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगी. भगवान्ने अहिंसा परमो धर्मः का संदेश थोडा ही समय में अखिल भारत में पहुंचा दिया । ____ भारत में जैन और वेदान्तिक धर्म चिरकाल से चला आ रहा था पर जब से स्वार्थप्रिय ब्राह्मणोंने अपने धर्म में हिंसा को अग्रस्थान दिया तब से जैनो और ब्राह्मणों के आपस में पारस्परिक विरोध हो उठा । भगवान् महावीर के समय तो उन का भयंकर रूप और भी बढ़ गया था. तथापि सत्य के सामने शिर झुकाना ही पडा उस समय वेदान्तिक धर्म के अन्तर्गत द्वैतवाद-अद्वैतवाद एवं छोटे बडे केइ धर्म प्रचलित थे उन के अन्दर एक पक्ष जो संन्यासीयों के नाम से प्रसिद्ध था वह ब्राह्मणों के खिलाफ यज्ञ बलि के विरूद्ध झंडा उठाया था पर उन को उस में विशेष सफलता नहीं मिली थी. ., दूसरा क्षिणवादी बौद्धधर्म का भी उस समय बहुत प्रचार था जिस का उत्पादक महात्मा बुद्ध था. और तीसरा नियतवादी भाजीविक धर्म का भी प्रादुर्भाव हो चुका था. इन का प्रवर्तक
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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